IIT वाले बाबा अभय सिंह: मुस्कुराते चेहरे के पीछे की अनकही दास्तान, गर्लफ्रेंड से रिश्ता तोड़ बने साधु

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IIT वाले बाबा अभय सिंह: मुस्कुराते चेहरे के पीछे की अनकही दास्तान, गर्लफ्रेंड से रिश्ता तोड़ बने साधु

प्रयागराज के महाकुंभ में इन दिनों एक साधु काफी चर्चा में हैं। साधु तो कई मिलते हैं, लेकिन यह साधु अनोखा है। इनके नाम के आगे एक ऐसा शब्द जुड़ा है, जो शायद ही किसी और बाबा के नाम के साथ जुड़ा हो – “आईआईटी वाले बाबा”।

आईआईटी बॉम्बे जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई करने के बाद संन्यास का जीवन चुनने वाले अभय सिंह के बारे में जानकर हर कोई हैरान है। उनकी कहानी सिर्फ हैरान करने वाली ही नहीं है, बल्कि यह हर मां-बाप के लिए एक सीख भी है। आइए, जानते हैं उनके जीवन की उस दास्तान को, जो उनके चेहरे पर मुस्कान के पीछे छिपे दर्द को उजागर करती है।


IIT वाले बाबा अभय सिंह कौन हैं?

अभय सिंह ने आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई की। उस आईआईटी से, जिसे देशभर के छात्र सपनों में देखते हैं। लेकिन आज वह साधु के वेश में महाकुंभ के शिविरों में पाए जाते हैं। आईआईटी से एक शानदार करियर की उम्मीद रखने वाले अभय ने वह सबकुछ क्यों छोड़ दिया, यह सवाल हर किसी के मन में उठता है।


IIT वाले बाबा की बचपन की कड़वी यादें

अभय के जीवन का सबसे गहरा दर्द उनके बचपन में छिपा है। उन्होंने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उनके माता-पिता के बीच रोज़ाना होने वाले झगड़ों ने उनके दिल और दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी।

अभय ने कहा:

“मेरे माता-पिता के झगड़ों ने मुझे अंदर से तोड़ दिया। उनकी लड़ाई में मैं फंसा रहता था। मुझे समझ ही नहीं आता था कि इन हालातों में क्या किया जाए।”

अभय के बचपन का यह ट्रॉमा इतना गहरा था कि इसका असर उनके पूरे जीवन पर पड़ा।


घरेलू हिंसा का बच्चों पर असर

अभय का मानना है कि किसी भी घर में होने वाली हिंसा का सबसे बड़ा असर बच्चों पर पड़ता है। भले ही वे झगड़े का सीधा शिकार न हों, लेकिन उनका नाजुक मन इन घटनाओं को समझ नहीं पाता।

अभय कहते हैं:

“बच्चे बहुत हेल्पलेस होते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता कि कैसे रिएक्ट करें। मैं स्कूल से आकर सो जाता था, ताकि झगड़े न सुनने पड़ें। रात में जब सब सो जाते थे, तब मैं पढ़ाई करता था।”


आईआईटी तक का सफर

अभय की कहानी यह भी बताती है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद अगर हौसला हो तो इंसान किसी भी मुकाम को हासिल कर सकता है।

उनके शब्दों में:

“मैंने अपनी सारी ऊर्जा पढ़ाई में लगा दी। मैं दिनभर सोता और रात में पढ़ता था। उस वक्त कोई लड़ाई नहीं होती थी, और मैं शांति से पढ़ाई कर पाता था।”

उनकी मेहनत रंग लाई, और उन्होंने आईआईटी बॉम्बे में दाखिला पाया। लेकिन उनके अंदर का दर्द कहीं न कहीं दबा हुआ था।


शादी से इनकार और अकेलेपन का चुनाव

अभय की जिंदगी के इस दर्द ने उन्हें रिश्तों से दूर कर दिया। उन्होंने न केवल शादी से इनकार किया, बल्कि अपनी गर्लफ्रेंड से भी रिश्ता तोड़ लिया।

“मुझे हमेशा यह डर रहता था कि शादी के बाद भी झगड़े होंगे। मैंने सोचा, इससे अच्छा है कि मैं अकेला ही रहूं। मैंने अपनी गर्लफ्रेंड से रिश्ता खत्म कर लिया, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि इसे कैसे निभाया जाए।”


फिल्मों के जरिए दर्द को उकेरा

अभय ने अपने जीवन के अनुभवों को समझने और व्यक्त करने के लिए एक फिल्म बनाई – “वही सवाल”। इस फिल्म में उन्होंने अपने बचपन की कड़वी यादों को उकेरा। लेकिन यह फिल्म बनाना उनके लिए आसान नहीं था।

“जब मैंने फिल्म बनाई, तो मेरी बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं। उस दर्द को फिर से जीना मेरे लिए बहुत मुश्किल था।”


संन्यास का रास्ता क्यों चुना?

अभय के लिए संन्यास का रास्ता दर्द से मुक्ति का साधन बन गया। उन्होंने कहा:

“मुझे लगा कि अगर यही दुनिया है – जहां झगड़े, दर्द और भ्रम है – तो इससे अच्छा है कि मैं इसे छोड़ दूं। मैंने मोहमाया से दूर रहने का फैसला किया।”

आज वह साधु के वेश में एक साधारण जीवन जी रहे हैं।


मां-बाप के लिए एक सबक

अभय की कहानी हर माता-पिता के लिए एक सबक है। यह दिखाती है कि बच्चों पर घरेलू झगड़ों का कितना गहरा असर पड़ सकता है। अभय कहते हैं:

“माता-पिता को यह समझना चाहिए कि उनके झगड़े बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।”


अभय सिंह का संदेश

अभय का मानना है कि बच्चों को बचपन में ही सही वातावरण और मानसिक शांति मिलनी चाहिए। अगर माता-पिता यह सुनिश्चित नहीं कर पाते, तो यह उनके भविष्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।


आईआईटी वाले बाबा की कहानी हमें यह सिखाती है कि जिंदगी के हर पहलू में बैलेंस बनाए रखना कितना जरूरी है। अगर माता-पिता अपने बच्चों को सही माहौल नहीं दे पाते, तो इसका असर उनके पूरे जीवन पर पड़ सकता है।

अभय ने अपने दर्द को स्वीकार किया और एक नया रास्ता चुना। उनकी यह यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह हर किसी को सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने परिवार और बच्चों के लिए किस तरह का माहौल बना रहे हैं।

क्या आप भी इस कहानी से कुछ सीख ले पाए? अपने विचार कमेंट में जरूर बताएं।

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