Betul news: बैतूल का काला सोना, अवैध कोयला खनन और माफियाओं का बेखौफ साम्राज्य
बैतूल का काला सोना: अवैध कोयला खनन और माफियाओं का बेखौफ साम्राज्य
बैतूल, मध्य प्रदेश का एक शांत और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर जिला, इन दिनों अवैध कोयला खनन के कारण सुर्खियों में है। जिले के डूल्हारा गांव में तवा नदी के किनारे कोयला, जिसे स्थानीय लोग “काला सोना” कहते हैं, बेहिसाब मात्रा में पाया जाता है। हालांकि, यह सोना इलाके के विकास का कारण बनने के बजाय अवैध खनन और माफियाओं की लूट-खसोट का जरिया बन गया है।
डूल्हारा और आसपास के क्षेत्रों में अवैध कोयला खनन के मामलों ने प्रशासन और समाज के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। यहां न केवल स्थानीय माफिया सक्रिय हैं, बल्कि पूरा गांव इस काले धंधे में शामिल हो चुका है।
डूल्हारा: तवा नदी किनारे का काला साम्राज्य
डूल्हारा गांव तवा नदी के किनारे बसा है, जहां की जमीन कोयले के बड़े भंडारों से भरी हुई है। यहां जमीन की सतह से कुछ ही फीट नीचे कोयले की परतें मिलती हैं।
कोयले की अवैध खुदाई का तरीका
- सुरंगें बनाकर खनन:
गांव के लोग और माफिया मिलकर जमीन में सुरंगें बनाते हैं। इन सुरंगों को इस तरह बनाया जाता है कि ये दूर से दिखाई न दें। - खतरनाक खदानें:
कई जगह गहरे कुएं जैसी खदानें बनती हैं, जो बेहद खतरनाक होती हैं। ये खदानें 50 से 100 फीट गहरी होती हैं, जिनमें मजदूर जान जोखिम में डालकर कोयला निकालते हैं। - मुहानों को छुपाना:
कोयला निकालने के बाद इन सुरंगों और खदानों के मुहानों को छुपा दिया जाता है ताकि प्रशासन को इसकी भनक न लगे।
गांव की अर्थव्यवस्था और कोल माफियाओं का साम्राज्य
डूल्हारा गांव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह इस अवैध खनन पर निर्भर है।
- गांव के लोग माफियाओं के लिए काम करते हैं।
- मजदूरी के नाम पर लोगों को मामूली पैसे दिए जाते हैं, जबकि माफिया ऊंचे दामों पर कोयला बेचते हैं।
- यह कोयला बैतूल के पड़ोसी जिलों से लेकर इंदौर, भोपाल और महाराष्ट्र तक ऊंचे दामों पर बेचा जाता है।
यहां का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में इस अवैध कारोबार से जुड़ा है, जिससे माफियाओं को बढ़ावा मिलता है।
प्रशासन का संघर्ष और असफलता
बैतूल जिला प्रशासन ने कई बार इन खदानों को बंद करने की कोशिश की है, लेकिन कोल माफियाओं का जाल इतना मजबूत है कि हर बार ये लोग नए मुहाने खोलकर खनन शुरू कर देते हैं।
प्रशासन की कार्रवाई:
- खनिज विभाग की कोशिशें:
प्रशासन ने जेसीबी मशीनों की मदद से इन खदानों और सुरंगों को बंद करने का प्रयास किया है। - कलेक्टर के निर्देश:
हाल ही में कलेक्टर ने इन अवैध खदानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। - स्थायी समाधान का अभाव:
प्रशासन जितनी खदानें बंद करता है, माफिया उससे ज्यादा खदानें खोल लेते हैं।
कानून व्यवस्था की चुनौती:
- माफिया स्थानीय लोगों को अपनी तरफ मिलाकर प्रशासन को चकमा देते हैं।
- पुलिस और खनिज विभाग की टीमों को गांव में घुसने तक नहीं दिया जाता।
- कई बार खनन स्थल पर हिंसक झड़पें भी हुई हैं।
अवैध खनन के दुष्प्रभाव
पर्यावरणीय क्षति:
- तवा नदी प्रदूषित हो रही है।
- खनन के कारण जंगल और खेती की जमीन बर्बाद हो रही है।
- भूगर्भीय अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे जमीन धंसने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
सामाजिक प्रभाव:
- गांव के लोग इस अवैध धंधे में फंसकर शिक्षा और वैध रोजगार से दूर हो रहे हैं।
- माफियाओं का खौफ इतना बढ़ गया है कि स्थानीय लोग इनके खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं।
मानव जीवन को खतरा:
- खदानों में काम करने वाले मजदूर बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करते हैं, जिससे उनकी जान हमेशा खतरे में रहती है।
- खदानों के ढहने की घटनाएं भी हो चुकी हैं।
स्थायी समाधान की आवश्यकता
वैध खनन को बढ़ावा:
- सरकार अगर इन क्षेत्रों में वैध खनन शुरू करे तो इससे न केवल रोजगार मिलेगा, बल्कि कोयले का सही इस्तेमाल भी हो सकेगा।
- वैध खनन से सरकार को राजस्व भी प्राप्त होगा।
माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई:
- माफियाओं के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाएं।
- इन पर जुर्माना लगाने के साथ-साथ जेल की सजा भी दी जाए।
स्थानीय लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार:
- गांव के लोगों को वैकल्पिक रोजगार के अवसर दिए जाएं।
- शिक्षा और स्वरोजगार की दिशा में काम किया जाए।
क्या बैतूल कोल माफियाओं से मुक्त हो पाएगा?
डूल्हारा और आसपास के इलाकों में अवैध कोयला खनन ने प्रशासन, समाज और पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। जब तक सरकार और स्थानीय प्रशासन इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक यह काला कारोबार यूं ही चलता रहेगा।
बैतूल के लोग इस अवैध खनन से बाहर निकलकर एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं, लेकिन इसके लिए समाज, प्रशासन और सरकार को मिलकर काम करना होगा। “काला सोना” केवल संसाधन नहीं, बल्कि विकास का जरिया बनना चाहिए।
“क्या बैतूल माफियाओं से मुक्त होकर विकास की नई कहानी लिख सकेगा? यह सवाल आज हर जागरूक नागरिक के मन में है।”