
Betul News: बैतूल में एक परिवार का बहिष्कार, जो भी इनसे मिला लगेगा भरी जुर्माना
Betul News: बैतूल में एक परिवार का बहिष्कार जो भी इनसे मिला लगेगा भरी जुर्माना
बैतूल, मध्य प्रदेश: आधुनिक युग में भी कई जगहों पर दकियानूसी सोच और सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाएं देखने को मिलती हैं। ऐसी ही एक घटना मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के भयावाड़ी गांव से सामने आई है। यहां मनोहरलाल बढ़िया नामक व्यक्ति पर उसके ही छोटे भाई ने पत्थर (फर्सी) चोरी का आरोप लगाया और गांव की पंचायत ने बिना उनकी बात सुने परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
अब स्थिति यह है कि मनोहरलाल बढ़िया के परिवार से कोई मिलने तक नहीं जाता और न ही उन्हें किसी सामाजिक कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता है। इतना ही नहीं, अगर कोई व्यक्ति इस परिवार के साथ संपर्क करता है तो उस पर भी समाज द्वारा जुर्माना लगाया जा रहा है।
बैतूल में एक परिवार का बहिष्कार, जो भी इनसे मिला लगेगा भरी जुर्माना
इस लेख में हम इस सामाजिक बहिष्कार के पूरे मामले को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि कैसे एक झूठे आरोप ने पूरे परिवार को समाज से अलग-थलग कर दिया।
1. क्या है पूरा मामला?
यह मामला बैतूल जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के भयावाड़ी गांव का है, जहां मनोहरलाल बढ़िया नामक व्यक्ति पर उसके छोटे भाई ने पत्थर (फर्सी) चोरी का आरोप लगाया।
मनोहरलाल का कहना है कि उन्होंने 15-20 साल पहले यह पत्थर खरीदा था, लेकिन उनके भाई ने इस पर मालिकाना हक जताते हुए चोरी का आरोप लगाया। मामले को लेकर गांव की पंचायत बुलाई गई, लेकिन मनोहरलाल किसी कारणवश इस पंचायत में नहीं जा पाए।
क्या हुआ पंचायत में?
- भाई के आरोप पर बिना पक्ष सुने पंचायत ने फैसला सुनाया।
- मनोहरलाल के परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया।
- समाज के लोगों को सख्त निर्देश दिए गए कि कोई उनके घर न जाए और न उन्हें अपने घर बुलाए।
- अगर कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।
2. पत्थर चोरी का आरोप और पंचायत का फैसला
मनोहरलाल बढ़िया के छोटे भाई ने आरोप लगाया कि उन्होंने एक फर्सी (पत्थर) चोरी की है, जबकि मनोहरलाल ने साफ कहा कि यह पत्थर उन्होंने 15-20 साल पहले खरीदा था।
पंचायत में क्या हुआ?
- मनोहरलाल ने कहा कि उन्होंने पंचायत में न पहुंच पाने की सूचना पहले ही दे दी थी।
- इसके बावजूद पंचायत ने उनकी गैरमौजूदगी में एकतरफा फैसला सुनाते हुए पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
- मनोहरलाल और उनके परिवार पर प्रतिबंध लगा दिया गया कि कोई उनसे संपर्क नहीं करेगा और न ही कोई उनके घर आएगा।
पंचायत का आदेश:
- अगर कोई भी व्यक्ति इस परिवार से मिलता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।
- पंचायत ने इस आदेश का पालन करने की सख्त हिदायत दी।
3. शादी में शामिल हुए लोगों पर जुर्माना
मनोहरलाल के बेटे ब्रजेश ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि करीब 3 महीने पहले उनकी बहन की शादी थी।
शादी में क्या हुआ?
- गांव से कोई भी व्यक्ति शादी में शामिल नहीं हुआ।
- सिर्फ 4 लोग शादी में आए, लेकिन उन पर भी समाज ने जुर्माना लगा दिया।
- इन 4 लोगों पर पंचायत ने जुर्माने की कार्रवाई की ताकि कोई भी भविष्य में इस परिवार से संबंध न रखे।
4. समाज का समर्थन या अन्याय?
समाज की प्रतिक्रिया:
- गांव में बनारस वर्मा नामक व्यक्ति का कहना है कि मनोहरलाल ने पंचायत में जाने से इनकार कर दिया था, इसलिए पंचायत ने यह फैसला सुनाया।
- वर्मा ने बताया कि “अगर उन्होंने पंचायत की बात मानी होती, तो शायद ये हालात नहीं होते।”
परिवार की पीड़ा:
- मनोहरलाल और उनके परिवार ने बार-बार कहा कि “हमने कोई चोरी नहीं की है, फिर भी हमें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया।”
- परिवार ने यह भी कहा कि पंचायत का फैसला एकतरफा और अन्यायपूर्ण है।
5. आधुनिक युग में सामाजिक बहिष्कार: क्या सही, क्या गलत?
आज के आधुनिक युग में जब समाज आगे बढ़ रहा है, ऐसे में इस तरह का सामाजिक बहिष्कार कहीं न कहीं पुरानी दकियानूसी सोच को उजागर करता है।
समस्याएं:
- सामाजिक बहिष्कार से व्यक्ति और परिवार दोनों मानसिक रूप से टूट जाते हैं।
- आर्थिक नुकसान: परिवार को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग कर दिया जाता है।
- मानवाधिकारों का हनन: यह सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है।
6. कानूनी नजरिया: क्या कहता है भारतीय कानून?
भारतीय दंड संहिता (IPC) और संविधान:
- अनुच्छेद 21: जीने का अधिकार हर नागरिक का मूल अधिकार है।
- अनुच्छेद 15: जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर किसी को बहिष्कृत करना अवैध है।
- सामाजिक बहिष्कार अधिनियम, 1963: यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति या परिवार के सामाजिक बहिष्कार को अवैध और दंडनीय मानता है।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका:
- ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना चाहिए।
7. समाज को कैसे बदल सकते हैं?
समाज में जागरूकता:
- शिक्षा और समझ: लोगों को यह समझाना जरूरी है कि सामाजिक बहिष्कार जैसे दकियानूसी विचार आज के समय में गलत हैं।
- कानूनी जागरूकता: समाज के लोगों को कानूनी अधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रता के बारे में शिक्षित करना होगा।
समाज के नेताओं की भूमिका:
- पंचायत प्रमुखों और समाज के नेताओं को समाज को आगे बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुप्रथाओं को खत्म करना चाहिए।
8. दकियानूसी सोच से कब मिलेगा मुक्ति?
बैतूल के भयावाड़ी गांव में हुआ यह मामला एक दकियानूसी सोच का उदाहरण है, जहां सामाजिक बहिष्कार ने एक निर्दोष परिवार को समाज से अलग-थलग कर दिया।
आज के दौर में जब हम विज्ञान, तकनीक और शिक्षा में आगे बढ़ रहे हैं, तब भी इस तरह की घटनाएं समाज को पीछे धकेल देती हैं।
👉 समाज को यह समझना होगा कि सामाजिक बहिष्कार न केवल अन्याय है बल्कि यह मानवाधिकारों का भी हनन है।
👉 पुलिस और प्रशासन को ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
अब समय आ गया है कि समाज में बदलाव आए और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुप्रथाओं को पूरी तरह खत्म किया जाए। तभी हम एक समान और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। 🚫