
मक्का की खेती से किसान बना मिसाल: 40 एकड़ में 40 क्विंटल प्रति एकड़ उपज, 90 दिनों में शुरू हुई कमाई
मक्का की खेती से किसान बना मिसाल: 40 एकड़ में 40 क्विंटल प्रति एकड़ उपज, 90 दिनों में शुरू हुई कमाई
भारत में खेती एक परंपरा से कहीं अधिक जीवनशैली है। यहां के किसान हर दिन नई चुनौतियों से जूझते हैं, नई तकनीकों को अपनाते हैं और कई बार अपनी मेहनत और समझदारी से उदाहरण बन जाते हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण हमें देखने को मिला उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के किसान वीरेंद्र सिंह के रूप में, जिन्होंने मक्का की खेती कर ऐसी सफलता पाई जिसे जानकर देशभर के किसान प्रेरित हो सकते हैं।
वीरेंद्र सिंह ने अपने गांव जगतपुर, तहसील सदर, जिला रामपुर में 40 एकड़ भूमि पर मक्का की खेती कर एक नई मिसाल कायम की है। वे बताते हैं कि मक्का की जो संकर किस्म उन्होंने लगाई, उसकी वजह से उन्हें मात्र 90 से 95 दिनों में शानदार उत्पादन मिला। आइए, जानते हैं उनकी खेती की पूरी कहानी, इस्तेमाल की गई तकनीकें, किस्म की विशेषताएं, और कैसे वे मक्का से मुनाफा कमा रहे हैं।
मक्का की किस्म 9108: उपज और गुणवत्ता का बेजोड़ मेल
वीरेंद्र सिंह ने मक्का की जो किस्म चुनी, उसका नाम है 9108 संकर किस्म। यह किस्म दो अलग-अलग नस्लों को मिलाकर बनाई गई है, जिसे हाइब्रिड (संकर) कहा जाता है। हाइब्रिड फसलें आमतौर पर पारंपरिक किस्मों से ज्यादा उपज देती हैं और इनका जीवनकाल कम होता है यानी जल्दी तैयार हो जाती हैं।
किस्म 9108 की विशेषताएं:
- 90 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है।
- खरीफ सीजन के लिए सबसे उपयुक्त।
- प्रति एकड़ उपज 35 से 40 क्विंटल तक।
- अनाज नारंगी रंग का और पीले शिखर वाला।
- सीरा (Tip) पूरी तरह से भरा हुआ होता है।
- दाने एक जैसे और घने होते हैं।
- शेलिंग रिकवरी बहुत अच्छी है।
- मंडी में बेहतर दाम मिलते हैं।
वीरेंद्र बताते हैं कि यह किस्म विशेष रूप से बसंत और खरीफ मौसम के लिए आदर्श है और इससे उत्पादन सामान्य किस्मों से कहीं अधिक होता है।
खेती का तरीका: किस तरह तैयार किया गया खेत?
वीरेंद्र सिंह ने मक्का की खेती के लिए अपने खेत की सही तरीके से तैयारी की। वे मानते हैं कि अच्छी फसल पाने के लिए जमीन की प्रारंभिक तैयारी सबसे अहम कदम है।
1. खेत की जुताई
- सबसे पहले उन्होंने गहरी जुताई की ताकि मिट्टी की ऊपरी परत पलट जाए और मिट्टी में नमी और हवा का संतुलन बना रहे।
- इसके बाद दो बार रोटावेटर से खेत को समतल किया गया।
2. मिट्टी की जांच
- खेत की मिट्टी की जांच (Soil Testing) करवाई गई जिससे यह पता चल सके कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्व की कमी है।
- जांच के अनुसार NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) की मात्रा तय की गई।
3. बीज बोने की दूरी
- वीरेंद्र सिंह ने पौधों के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखी।
- कतारों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर रखी गई।
- इस दूरी से पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे उनकी बढ़वार तेज होती है।
बीज का चुनाव और बोवाई का समय
बीज मक्का की फसल में सबसे अहम भूमिका निभाता है। वीरेंद्र सिंह ने उच्च गुणवत्ता वाले 9108 हाइब्रिड बीज का चुनाव किया जो बाजार में विश्वसनीय कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
बीज उपचार
- बीज बोने से पहले फफूंदनाशक और कीटनाशक से उपचारित किया गया जिससे अंकुरण की दर बढ़े और बीमारी का खतरा कम हो।
बुआई का समय
- उन्होंने मक्का की बुआई जुलाई के पहले सप्ताह में की, जब मौसम में पर्याप्त नमी थी।
- इस समय पर बोने से 90 से 95 दिनों के अंदर फसल पूरी तरह तैयार हो गई।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
मक्का की अच्छी पैदावार के लिए समय पर सिंचाई और खाद प्रबंधन बहुत जरूरी है।
सिंचाई व्यवस्था
- पहले बुआई के तुरंत बाद सिंचाई की गई।
- इसके बाद फूल आने और दाना बनने के समय 2 से 3 बार सिंचाई की गई।
खाद और उर्वरक
- गोबर की खाद खेत में पहले से डाली गई थी।
- बुआई के समय DAP (डाय अमोनियम फॉस्फेट) डाली गई।
- फसल के 20 और 40 दिन बाद यूरिया का छिड़काव किया गया।
कीट और रोग नियंत्रण
वीरेंद्र सिंह ने बताया कि फसल को कीटों से बचाने के लिए उन्होंने जैविक और रासायनिक दोनों तरह के उपाय किए।
- फॉल आर्मी वॉर्म जैसे कीटों के लिए समय पर दवा का छिड़काव किया गया।
- नीम के अर्क का भी छिड़काव किया जिससे छोटे कीट और फफूंद से बचाव हुआ।
कटाई और भंडारण
मक्का की फसल 90 से 120 दिन में पूरी तरह तैयार हो जाती है। वीरेंद्र सिंह की फसल 95 दिनों में तैयार हो गई।
कटाई का तरीका
- सबसे पहले हाथ से फसल काटी गई।
- फिर मक्का की बालियों को अलग किया गया।
- इन्हें 4 से 5 दिन धूप में सुखाया गया ताकि नमी 12% से कम हो जाए।
भंडारण
- मक्का को सूखाने के बाद प्लास्टिक कंटेनर और बोरे में भरकर एक सूखी जगह पर रखा गया।
- नमी से बचाने के लिए नीचे लकड़ी की फट्टियां बिछाई गईं।
बाजार में बिक्री और कमाई
वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने मक्का को रामपुर की लोकल मंडी में बेचा। वहां पर 1 क्विंटल मक्का का रेट लगभग ₹1800 से ₹2000 के बीच था।
उनकी गणना इस प्रकार है:
- प्रति एकड़ उत्पादन = 40 क्विंटल
- कुल एकड़ = 40
- कुल उत्पादन = 1600 क्विंटल
- औसत रेट = ₹1900 प्रति क्विंटल
- कुल कमाई = 1600 × ₹1900 = ₹30,40,000
उनका कहना है कि सभी खर्च काटने के बाद भी उन्हें लगभग 20 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ।
मक्का की खेती के लिए किसान भाईयों के लिए सुझाव
वीरेंद्र सिंह की सफलता से प्रेरित होकर यदि आप भी मक्का की खेती करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित सुझावों को ध्यान में रखें:
- उन्नत हाइब्रिड किस्म का चुनाव करें जैसे 9108।
- समय पर बुआई करें—खरीफ मौसम के शुरुआत में।
- मिट्टी की जांच जरूर कराएं और उसी अनुसार उर्वरक डालें।
- पौधों के बीच की दूरी 25-30 सेमी रखें।
- सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण समय पर करें।
- फसल कटाई के बाद मक्का को अच्छी तरह सुखाएं।
- लोकल मंडियों के दाम की जानकारी रखें।
मेहनत + तकनीक = सफलता
किसान वीरेंद्र सिंह ने यह साबित कर दिया है कि अगर कोई भी किसान उन्नत तकनीकों, सही जानकारी और मेहनत के साथ खेती करे तो वह कम समय में भी अच्छी कमाई कर सकता है। मक्का की खेती आज एक लाभदायक विकल्प बन चुकी है, खासकर उन इलाकों में जहां पानी की सीमित उपलब्धता है और सिंचाई की कम सुविधा है।
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अगर आप भी किसान हैं और कम समय में ज्यादा उपज पाना चाहते हैं तो मक्का की उन्नत किस्मों के साथ इस खेती की शुरुआत करें। सरकार भी कई योजनाओं के जरिए किसानों को बीज, उर्वरक और तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है।