जीएसटी हटा, डीएपी-यूरिया के दाम हुए बेहद कम! 2025 में किसानों को मिली बड़ी राहत, जानें पूरी डिटेल

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जीएसटी हटा, डीएपी-यूरिया के दाम हुए बेहद कम! 2025 में किसानों को मिली बड़ी राहत, जानें पूरी डिटेल

आज हम बात करने जा रहे हैं हर भारतीय किसान के दिल के सबसे करीब एक मुद्दे की – खाद के दामों की। अगर आप खेती-किसानी से जुड़े हैं, या फिर इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद खुशी की है। साल 2025 में सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसने डीएपी और यूरिया जैसे जरूरी उर्वरकों की कीमतों में रिकॉर्ड तोड़ गिरावट दर्ज की है। यह गिरावट सीधे तौर पर जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) में हुए एक बड़े बदलाव का नतीजा है।

चलिए, आज इस ब्लॉग के जरिए हम विस्तार से समझते हैं कि आखिर यह बदलाव हुआ क्या है, इससे पहले की स्थिति क्या थी, और भविष्य में इसके क्या सुखद परिणाम देखने को मिल सकते हैं। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि इन खादों का सही और संतुलित इस्तेमाल कैसे किया जाए ताकि न सिर्फ आपकी फसल अच्छी हो, बल्कि आपकी मिट्टी भी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहे।

वह समय जब खाद के बढ़ते दाम थे किसानों के सिरदर्द की वजह

इस नई खुशखबरी को समझने से पहले, थोड़ा पीछे चलते हैं और यह जान लेते हैं कि पिछले कुछ सालों में हालात क्या थे। कोई भी किसान भाई इस बात से इनकार नहीं करेगा कि डीएपी और यूरिया की बढ़ती कीमतों ने उनकी खेती की लागत को काफी बढ़ा दिया था। बीज, पानी, बिजली, मजदूरी के खर्चे के बाद खाद पर होने वाला खर्च सबसे बड़ा और जरूरी खर्च होता है।

एक समय था जब 50 किलो की एक बोरी डीएपी किसानों को लगभग 1350 रुपये में मिल जाती थी। यह कीमत भी सरकार द्वारा दी जाने वाली भारी-भरकम सब्सिडी के बाद थी। असल में, उस डीएपी बोरी की वास्तविक लागत 1500 रुपये के आसपास थी, लेकिन सरकार किसानों को राहत देने के लिए बीच में सब्सिडी का हाथ बढ़ाती थी। यूरिया की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। सरकारी नियंत्रण और सब्सिडी के चलते ही यूरिया की कीमतें किसानों की पहुंच में बनी हुई थीं।

लेकिन समस्या यह थी कि दुनिया भर में उर्वरकों के कच्चे माल की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। इसका सीधा असर हमारे देश में भी पड़ रहा था। सब्सिडी के बावजूद, किसानों को महसूस होने लगा था कि खेती की लागत बढ़ती जा रही है और मुनाफा घटता जा रहा है। ऐसे में, किसानों के मन में एक तरह की अनिश्चितता और चिंता का माहौल बन गया था। हर सीजन में यह डर सता रहा था कि कहीं खाद के दाम और न बढ़ जाएं।

खाद सिर्फ खाद नहीं, फसल का ‘पोषण आहार’ है

इस चर्चा में आगे बढ़ने से पहले, यह समझ लेना जरूरी है कि आखिर ये डीएपी और यूरिया हैं क्या, और खेती में इनकी भूमिका इतनी अहम क्यों है। आसान भाषा में कहें तो, अगर फसल एक बच्चे की तरह है, तो ये उर्वरक उसका पोषण यानी पावर फूड हैं।

डीएपी (Di-Ammonium Phosphate) क्या काम आता है?
डीएपी को हम फसल का ‘स्टैमिना बूस्टर’ कह सकते हैं। इसमें लगभग 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस पाया जाता है।

  • नाइट्रोजन: यह पौधे की हरी-भरी पत्तियों और मजबूत तनों के विकास के लिए जिम्मेदार है। यह पौधे को हरा-भरा और स्वस्थ रखता है।
  • फास्फोरस: यह पौधे की जड़ों के विकास के लिए सबसे जरूरी तत्व है। मजबूत जड़ें मतलब पौधा मिट्टी से पानी और पोषक तत्व बेहतर तरीके से सोख पाएगा। यह फसल की पैदावार बढ़ाने और फल-बीजों के विकास में भी अहम भूमिका निभाता है।

सीधे शब्दों में कहें, तो डीएपी पौधे की नींव को मजबूत करता है और उसकी समग्र वृद्धि में मदद करता है।

यूरिया क्या काम आता है?
यूरिया को हम फसल का ‘इंस्टेंट एनर्जी’ कह सकते हैं। यह मुख्य रूप से नाइट्रोजन (लगभग 46%) का एक केंद्रित स्रोत है। जब पौधे को तेजी से बढ़ने और हरा-भरा होने की जरूरत होती है, खासकर बुवाई के बाद के शुरुआती दिनों में, यूरिया सबसे कारगर उर्वरक साबित होता है। यह पौधे को जल्दी और प्रभावी ढंग से नाइट्रोजन पहुंचाता है।

इन दोनों का सही समय पर और सही मात्रा में इस्तेमाल ही भरपूर और गुणवत्तापूर्ण पैदावार की गारंटी होता है।

2025 का वह ऐतिहासिक फैसला: जीएसटी हटा, दाम घटे!

अब आते हैं इस ब्लॉग की सबसे महत्वपूर्ण बात पर। 2025 में केंद्र सरकार ने किसानों के हित में एक बहुत बड़ा और सराहनीय फैसला लिया। सरकार ने डीएपी और यूरिया जैसे जरूरी उर्वरकों पर लगने वाले जीएसटी को पूरी तरह से हटा दिया। यानी अब इन उत्पादों पर कोई अतिरिक्त टैक्स नहीं लगेगा।

इस एक फैसले ने क्या कमाल किया, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि खादों की कीमतों में रातों-रात एक बड़ी गिरावट देखने को मिली। यह गिरावट इतनी significant थी कि इसे ‘रिकॉर्ड तोड़’ करार दिया गया।

तो अब नए दाम क्या हैं?

आइए, अब जानते हैं कि जीएसटी हटने के बाद आखिर किसानों को यूरिया और डीएपी कितने रुपये में मिल रहा है।

  • यूरिया की नई कीमत: अब 45 किलो की एक बोरी यूरिया किसानों को मात्र 262 रुपये से लेकर 268 रुपये के बीच में उपलब्ध कराई जा रही है। यह कीमत सरकारी सब्सिडी के बाद है। यह एक बहुत बड़ी राहत है।

इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि अगर सरकार सब्सिडी न दे, तो यही यूरिया की बोरी किसानों को 2500 रुपये या उससे भी ज्यादा में पड़ सकती थी! सोचिए, सरकार लगभग 2200 रुपये से ज्यादा की सब्सिडी देकर किसानों तक यह जरूरी खाद पहुंचा रही है। यह सचमुच एक प्रशंसनीय कदम है।

  • डीएपी की स्थिति: जहां तक डीएपी की बात है, जीएसटी हटने के साथ-साथ सरकार ने उस पर मिलने वाली सब्सिडी को भी बरकरार रखा है। इससे डीएपी की कीमतों में भी काफी कमी आई है और किसानों को यह पहले के मुकाबले काफी सस्ते दामों पर मिल रहा है। हालांकि, इस ब्लॉग में सटीक आंकड़ा नहीं दिया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि किसानों पर वित्तीय बोझ कम हुआ है।

सिर्फ दाम ही नहीं, आपूर्ति की गारंटी भी

कीमतों में कमी के साथ-साथ सरकार ने एक और बड़ी चुनौती पर काम किया है – खाद की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना। अक्सर ऐसा होता था कि सस्ते दामों का फायदा तब तक नहीं मिल पाता, जब तक वह चीज बाजार में आसानी से उपलब्ध न हो।

सरकार ने इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लिया। मार्च 2025 तक, सरकारी कंपनियों ने यूरिया और डीएपी के आयात में तेजी ला दी, ताकि देश के हर कोने में, हर किसान को समय पर और पर्याप्त मात्रा में खाद मिल सके। सरकार ने राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए हैं कि वे अपने-अपने स्तर पर खाद के वितरण पर कड़ी नजर रखें। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी किसान को खाद की कमी का सामना न करना पड़े।

इस कदम से किसानों का भरोसा बढ़ा है। अब उन्हें यह डर नहीं सताता कि पैसा होने के बावजूद उन्हें खाद नहीं मिल पाएगी। इस भरोसे ने किसानों को अगली फसल की योजना बनाने और उसमें निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सस्ती खाद मिलना अच्छा है, लेकिन सही इस्तेमाल जरूरी है

अब जबकि खाद कम दाम पर और आसानी से उपलब्ध हो रही है, तो एक बहुत जरूरी बात की ओर ध्यान देना चाहिए – इन खादों का संतुलित और वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल।

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आपके बच्चे को पौष्टिक खाना तो मिल रहा है, लेकिन अगर आप उसे जरूरत से ज्यादा खिला देंगे, तो उसका नुकसान होगा। ठीक वैसे ही, जरूरत से ज्यादा यूरिया या डीएपी डालना आपकी फसल और आपकी मिट्टी, दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

तो क्या है संतुलित उपयोग का तरीका?

  1. मिट्टी की जांच जरूर कराएं: सबसे पहला और जरूरी कदम है अपने खेत की मिट्टी की जांच कराना। इससे पता चलता है कि आपकी मिट्टी में किस चीज की कमी है और किस चीज की अधिकता। इस आधार पर ही आपको तय करना चाहिए कि किस खाद की कितनी मात्रा डालनी है।
  2. फसल के हिसाब से खाद डालें: हर फसल की जरूरत अलग होती है।
    • गेहूं और धान जैसी फसलों को नाइट्रोजन की ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए इनमें यूरिया का प्रयोग फायदेमंद है।
    • चना, अरहर, सोयाबीन जैसी दालों और सरसों, मूंगफली जैसी तिलहन फसलों को फास्फोरस की ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए इनमें डीएपी का इस्तेमाल अहम हो जाता है।
  3. अधिक खाद डालने के नुकसान:
    • ज्यादा यूरिया: इससे पौधा तो हरा-भरा दिखेगा, लेकिन फल कम लगेंगे। साथ ही, यह मिट्टी की सेहत को खराब करता है और पानी में घुलकर जल प्रदूषण का कारण भी बन सकता है।
    • ज्यादा डीएपी: इससे मिट्टी में कुछ ऐसे तत्वों की कमी हो सकती है जो पौधे के लिए जरूरी हैं, जैसे जिंक। इससे फसल का विकास रुक सकता है।

इसलिए, सलाह यही है कि कृषि विशेषज्ञ की सलाह लें और उनके बताए अनुसार ही खाद का प्रयोग करें। इससे न सिर्फ आपकी लागत कम होगी, बल्कि पैदावार भी बेहतर होगी और आपकी जमीन लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहेगी।

सरकार की मंशा साफ, किसानों का भरोसा कायम

जीएसटी हटाने और सब्सिडी जारी रखने के सरकार के फैसले से एक बात तो साफ है – सरकार किसानों की बेहतरी के लिए प्रतिबद्ध है। यह कदम सीधे तौर पर किसानों की जेब पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि आने वाले समय में इन उर्वरकों की कीमतों में किसी तरह का उतार-चढ़ाव नहीं होने दिया जाएगा। यह स्थिरता किसानों के लिए बहुत जरूरी है, ताकि वे लंबे समय तक की योजना बना सकें।

एक नई उम्मीद की किरण

अंत में, हम यही कह सकते हैं कि डीएपी और यूरिया जैसे उर्वरक भारतीय कृषि की रीढ़ की हड्डी हैं। साल 2025 में जीएसटी हटने के बाद इनकी कीमतों में आई रिकॉर्ड गिरावट ने भारतीय किसान के चेहरे पर एक नई मुस्कान लौटाई है। अब 45 किलो की यूरिया की बोरी महज 262-268 रुपये में मिल रही है, जबकि बिना सब्सिडी के यह कीमत 2500 रुपये तक पहुंच सकती थी।

यह सिर्फ एक आर्थिक राहत भर नहीं है, बल्कि किसानों के मनोबल को बढ़ाने वाला एक बड़ा कदम है। इससे उम्मीद की जाती है कि किसानों की उत्पादन लागत कम होगी, उनकी आय में बढ़ोतरी होगी और देश की कृषि अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। हालांकि, किसान भाइयों को भी यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि वे इस राहत का फायदा उठाते हुए खाद का संतुलित और विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हमारी ‘धरती मां’ उपजाऊ और स्वस्थ बनी रहे।

जय जवान, जय किसान

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