Karva Chauth 2024: तिथि, चंद्रोदय समय, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा, उपवास और पूजा विधि

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Karva Chauth 2024: तिथि, चंद्रोदय समय, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा, उपवास और पूजा विधि

Karva Chauth 2024 का त्योहार भारत में विवाहित महिलाओं के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण और खास अवसर होता है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति और परंपराओं में सदियों से मनाया जा रहा है। खासकर उत्तर भारत में, महिलाएं इस दिन को पूरे उत्साह और श्रद्धा से मनाती हैं। करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत (बिना पानी के उपवास) रखती हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि करवा चौथ 2024 कब है, इसके महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में।

Karva Chauth 2024 का महत्व

Karva Chauth 2024 का त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, और इसका उद्देश्य पति की लंबी उम्र और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए उपवास रखना होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सुबह से लेकर रात तक बिना पानी और भोजन के उपवास करती हैं और शाम को चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं।

करवा चौथ का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि यह एक ऐसा पर्व है जो पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करता है। यह त्योहार उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में खासतौर पर मनाया जाता है, लेकिन अब यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया है।

Karva Chauth 2024: तिथि और समय

करवा चौथ हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस साल, करवा चौथ 20 अक्टूबर 2024 को रविवार के दिन मनाया जाएगा।

  • चतुर्थी तिथि: 20 अक्टूबर 2024 को सुबह 6:46 बजे से शुरू होकर 21 अक्टूबर को सुबह 4:16 बजे तक रहेगी।
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: 20 अक्टूबर को शाम 5:46 बजे से 7:02 बजे तक है, जिसकी कुल अवधि 1 घंटे 16 मिनट की होगी।
  • चंद्रोदय का समय: 20 अक्टूबर को रात 7:54 बजे के करीब चंद्रमा दिखाई देगा, लेकिन यह समय विभिन्न शहरों में थोड़ा अलग हो सकता है।

करवा चौथ का व्रत कैसे रखा जाता है?

करवा चौथ का व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं रखती हैं, लेकिन आजकल कई जगहों पर अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखने लगी हैं। इस दिन व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले होती है, और महिलाएं अगले दिन चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपना उपवास तोड़ती हैं। इस उपवास में पानी भी नहीं पिया जाता, इसलिए इसे “निर्जला व्रत” कहा जाता है।

व्रत की शुरुआत सुबह-सुबह सास द्वारा अपनी बहू को दी गई ‘सर्गी’ से होती है। सर्गी में विभिन्न प्रकार के व्यंजन, मिठाई और फल होते हैं। इसे सूर्योदय से पहले खाया जाता है ताकि दिनभर उपवास रखने वाली महिलाएं अपने शरीर को ऊर्जावान रख सकें।

व्रत के दौरान नियम और विधि

  • सूर्योदय के बाद महिलाएं व्रत का संकल्प लेकर दिनभर बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहती हैं।
  • इस दिन महिलाएं अपनी पसंद के अनुसार पारंपरिक परिधान पहनती हैं, जिसमें आमतौर पर साड़ी या लहंगा चोली होती है। वे गहने और मेहंदी लगाकर सजती-संवरती हैं, जिससे इस दिन की खुशी और उत्साह और बढ़ जाता है।
  • दिनभर महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करती हैं और करवा चौथ व्रत कथा सुनती हैं।
  • शाम को महिलाएं अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर पूजा करती हैं और चंद्रमा के निकलने का इंतजार करती हैं।
  • जैसे ही चंद्रमा दिखाई देता है, महिलाएं उसे छलनी से देखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद, पति अपनी पत्नी को पानी और मिठाई खिलाकर उसका व्रत तुड़वाते हैं।

करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ की व्रत कथा सुनना इस दिन की सबसे महत्वपूर्ण विधियों में से एक है। इस कथा के माध्यम से महिलाएं अपने व्रत की धार्मिक महत्ता को समझती हैं। करवा चौथ की प्रमुख व्रत कथाओं में से एक वीरावती की कथा है, जो इस त्योहार की परंपरा और धार्मिक आस्था का प्रतिनिधित्व करती है।

वीरावती की कथा

वीरावती एक सुंदर और धार्मिक स्त्री थीं, जिनके सात भाई थे। वह अपने भाइयों की इकलौती बहन थीं और वे उसे बेहद प्यार करते थे। वीरावती की शादी हो चुकी थी, और उसने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। हालांकि, उपवास के कारण वह भूख-प्यास से बेहद कमजोर हो गई और बेहोश हो गई।

वीरावती के भाई अपनी बहन की यह हालत देखकर परेशान हो गए। उन्होंने उसे व्रत तोड़ने के लिए मनाने की योजना बनाई। भाइयों ने एक पेड़ पर चढ़कर एक दीपक और छलनी का उपयोग कर नकली चंद्रमा बना दिया। फिर वीरावती को बताया कि चंद्रमा निकल आया है और अब वह अपना व्रत तोड़ सकती है।

वीरावती ने छलनी से नकली चंद्रमा को देखकर अपना व्रत तोड़ दिया। लेकिन जैसे ही उसने खाना खाया, उसके पति की मृत्यु हो गई। वीरावती बहुत दुखी हो गई और उसने अपने पति को खोने का दुख भगवान इंद्राणी से साझा किया। देवी इंद्राणी ने वीरावती को समझाया कि उसका व्रत अधूरा था और इसलिए उसे यह परिणाम भुगतना पड़ा। देवी ने उसे अगले 12 महीनों तक हर महीने चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी।

वीरावती ने देवी के आदेश का पालन किया और एक साल बाद, उसके पति को नया जीवन मिला। तभी से करवा चौथ का व्रत महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण और श्रद्धा से भरा हुआ पर्व बन गया।

पूजा की सामग्री (पूजन समग्री)

करवा चौथ की पूजा के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो इस दिन की पूजा को पवित्र और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है। आइए जानते हैं पूजा के लिए आवश्यक वस्त्र और सामग्री:

  • करवा (मिट्टी का बर्तन): करवा चौथ का नाम ही करवा से लिया गया है। यह एक मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
  • सिंदूर: सिंदूर का हिंदू संस्कृति में विवाहिता स्त्रियों के लिए बहुत महत्व होता है।
  • दीपक: पूजा में दीपक का खास महत्व होता है। इसे जलाकर देवी-देवताओं की आराधना की जाती है।
  • फूल और धूपबत्ती: देवी-देवताओं की पूजा में फूल और धूप का विशेष स्थान होता है।
  • चंदन: इसे पूजा में स्नान के बाद देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है।
  • रोल या हल्दी: ये दोनों सामग्रियां पूजा के दौरान उपयोग की जाती हैं।
  • मिठाई: पूजा के दौरान देवी को भोग लगाने के लिए मिठाई का प्रयोग होता है।
  • चावल और आटे की लोई: चावल और आटे की लोई का उपयोग करवा चौथ की पूजा के दौरान किया जाता है।

करवा चौथ के कुछ रोचक तथ्य

  1. अखंड विश्वास का प्रतीक: करवा चौथ महिलाओं के अपने पति के प्रति अखंड विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना पानी और भोजन के रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
  2. समाजिक महत्ता: करवा चौथ सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह समाजिक महत्ता भी रखता है। महिलाएं इस दिन एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, जिससे समाजिक रिश्ते भी मजबूत होते हैं।
  3. पति का प्यार: करवा चौथ पर पति अपनी पत्नी की मेहनत और तपस्या की सराहना करते हैं, और इस दिन को खास बनाने के लिए उन्हें उपहार भी देते हैं।
  4. संस्कृति का आदान-प्रदान: यह त्योहार भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को आगे बढ़ाता है।

करवा चौथ का त्योहार न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करने का एक खास अवसर भी है। इस दिन महिलाएं अपनी पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं।

इस त्योहार की कथा और परंपराएं भारतीय संस्कृति और समाज में स्त्रियों के महत्व को दर्शाती हैं। करवा चौथ न केवल विवाहित महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे परिवार के लिए भी एक खुशी और प्रेम से भरा हुआ पर्व है।

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