
मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां बेटियां बनती हैं पेट पालने का साधन, कुरीति में जकड़ा पूरा गांव
मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां बेटियां बनती हैं पेट पालने का साधन, कुरीति में जकड़ा पूरा गांव
विदिशा (मध्य प्रदेश): भारत में जहां एक तरफ समाज महिला सशक्तिकरण की ओर कदम बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के एक गांव में कुरीति और शोषण की भयावह तस्वीर उभरकर सामने आ रही है। यह गांव है सूखा करार, जहां बेटियों को पेट पालने का साधन बना दिया गया है। इस गांव में परिवार के पुरुष खुद अपनी बहन-बेटियों के लिए ग्राहक लेकर आते हैं और घर के बाहर कुर्सी लगाकर सौदेबाजी करते हैं।
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सूखा करार गांव में बेड़िया जाति के लोग बहुसंख्यक हैं, जिनकी जीवनशैली आज भी कुरीतियों और अंधविश्वासों में जकड़ी हुई है। इस गांव में ऐसा कोई भी घर नहीं है जहां महिलाएं इस धंधे में धकेली न जा रही हों। गांव में गरीबी और बेरोजगारी का ऐसा आलम है कि परिवार के पुरुष नशे की लत में डूबकर घर की महिलाओं को वेश्यावृत्ति में धकेलने को मजबूर कर देते हैं।
गांव की भयावह तस्वीर: सड़कों पर इज्जत की बोली लगती है
सूखा करार गांव में रात हो या दिन, सड़क के किनारे सज-धजकर बैठी जवान लड़कियां देखी जा सकती हैं। ये लड़कियां किसी फैशन शो का हिस्सा नहीं बल्कि ग्राहकों का इंतजार कर रही होती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन लड़कियों के ठीक बगल में उनके पिता, भाई और दादा ग्राहकों को रिझाने और रेट तय करने का काम करते हैं।
किसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि असलीयत है
यह दृश्य किसी फिल्म का सीन नहीं बल्कि सूखा करार गांव की कड़वी हकीकत है। यहां हर आने-जाने वाले व्यक्ति को इशारों में रेट बताया जाता है और घर के अंदर आने का न्योता दिया जाता है। गांव में ऐसा कोई घर नहीं है जहां यह काम न हो रहा हो।
मुकेश (बदला हुआ नाम) ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया:
“जब मैं सांची घूमने गया, तब मुझे इस गांव के बारे में पता चला। जिज्ञासा में गांव जाने का सोचा। गांव में घुसते ही कुछ लोग घेरकर खड़े हो गए और गांव में एंट्री करने के 150 रुपए मांगे। इसके बाद जैसे ही गांव के अंदर गया, वहां की गंदगी और शराब की दुर्गंध ने मेरा स्वागत किया। एक किराना दुकान पर रुका तो दुकान वाले ने इशारा किया और घर के अंदर ले गया। वहां कुछ महिलाएं बैठी हुई थीं और उसने रेट बताने शुरू कर दिए – ₹300, ₹500 और ₹600…।”
बेड़िया जाति की परंपरा बनी अभिशाप
सूखा करार गांव में बेड़िया जाति के लोग अधिक संख्या में रहते हैं। इस जाति में पुरानी परंपरा रही है कि परिवार की बेटियां वेश्यावृत्ति करके घर का खर्चा चलाती हैं। समय के साथ समाज आगे बढ़ गया लेकिन इस गांव में यह कुरीति आज भी जिंदा है।
क्यों मजबूर हैं लड़कियां?
- भुखमरी और गरीबी: गांव में रोजगार के साधन नहीं हैं। परिवार के पुरुष नशे में डूबे रहते हैं और महिलाओं को कमाई का साधन बना देते हैं।
- शिक्षा की कमी: गांव में शिक्षा का स्तर इतना खराब है कि बेटियां पढ़-लिखकर बाहर जाने का सपना भी नहीं देख सकतीं।
- परंपरा की जंजीरें: समाज की मान्यताएं और परंपराएं इतनी गहरी हैं कि महिलाएं इस दलदल से बाहर निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पातीं।
परिवार को पालने की मजबूरी
गांव की एक महिला ने बातचीत में बताया कि –
“घर में अगर चार महिलाएं हैं तो एक को यह काम करना ही पड़ता है ताकि पूरे परिवार का पेट भरा जा सके। यहां प्राइवेट नौकरी से ज्यादा कमाई इस धंधे में हो जाती है। कोई खुशी से नहीं करती, लेकिन पेट की भूख सब कुछ करवाती है।”
300 से शुरू होती है बोली, 600 तक पहुंचती है कीमत
गांव में महिलाओं की बोली लगाई जाती है और ग्राहकों की हैसियत के हिसाब से रेट तय होते हैं।
- ₹300 में सामान्य सेवा
- ₹500 में बेहतर सेवा
- ₹600 में विशेष सेवा
कई बार ग्राहकों से मोलभाव भी होता है। यह काम इतना संगठित तरीके से होता है कि ग्राहक एंट्री फीस देकर ही गांव में प्रवेश कर सकते हैं।
परिवार के पुरुष बनते हैं दलाल
सूखा करार गांव की सबसे दुखद स्थिति यह है कि महिलाओं के लिए ग्राहक ढूंढने का काम उनके परिवार के पुरुष ही करते हैं।
- पिता, भाई और दादा खुद ग्राहकों को लुभाते हैं और सौदेबाजी करते हैं।
- गांव में किराना दुकानें भी सिर्फ नाम के लिए होती हैं। इन दुकानों के पीछे ही यह घिनौना काम चलता है।
गांव का सरपंच भी चुप बैठा है। प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं।
कानून का डर नहीं, प्रशासन की आंखें बंद
गांव में वेश्यावृत्ति का काम खुलेआम बिना किसी डर के चलता है। प्रशासन को सब कुछ पता होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती।
- पुलिस भी मूकदर्शक:
- पुलिस को गांव की स्थिति की पूरी जानकारी है लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
- सरपंच की मिलीभगत:
- गांव के सरपंच और स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से यह धंधा बिना रोक-टोक के चल रहा है।
- नशे में धुत्त पुरुष:
- पुरुष शराब और नशे में इतने डूबे हैं कि अपनी बहन-बेटियों को ग्राहक तक लाने में भी शर्म महसूस नहीं करते।
सरकारी योजनाएं भी बेअसर
सरकार द्वारा महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सूखा करार गांव की महिलाओं तक इन योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
- उज्ज्वला योजना
- सुकन्या समृद्धि योजना
इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए जागरूकता की कमी है और गांव की महिलाएं इन योजनाओं से अछूती रह जाती हैं।
क्या है समाधान?
सूखा करार गांव की महिलाओं को कुरीति के इस जाल से बाहर निकालने के लिए सरकार को मजबूत कदम उठाने होंगे।
प्रमुख समाधान:
- शिक्षा और जागरूकता:
- लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाए ताकि आत्मनिर्भर बनने की राह खुल सके।
- स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता:
- महिलाओं को स्वरोजगार योजनाओं से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जाए।
- कानूनी कार्रवाई:
- पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
- पुनर्वास योजनाएं:
- महिलाओं को पुनर्वास योजनाओं के तहत सुरक्षित माहौल और रोजगार दिया जाए।
कब बदलेगी सूखा करार गांव की तस्वीर?
सूखा करार गांव की तस्वीर समाज के लिए एक कड़वा आईना है। जहां बेटियां बोली जाती हैं और परिवार के पुरुष दलाल बनकर ग्राहकों को बुलाते हैं।
- गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी ने इस गांव को अंधकार में धकेल दिया है।
- सरकार और प्रशासन को तत्काल ठोस कदम उठाने होंगे ताकि इन महिलाओं को इस दलदल से बाहर निकाला जा सके।
अब समय आ गया है कि सूखा करार गांव की बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हों और इज्जत के साथ जीवन जी सकें। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस गांव की तस्वीर बदले और बेटियों को बेहतर भविष्य दे।