पुरानी गाड़ियों को बेचने पर लगेगा 18% टैक्स, सरकार का कदम या आम जनता पर बोझ?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया है कि अब पुरानी गाड़ियों की खरीद-बिक्री पर 18% टैक्स लगाया जाएगा। यह टैक्स गाड़ी की खरीद और बिक्री के बीच के अंतर पर लागू होगा। उदाहरण के लिए, अगर आपने 12 लाख रुपये में नई गाड़ी खरीदी और कुछ साल बाद इसे 9 लाख रुपये में बेचा, तो 3 लाख रुपये के अंतर पर 18% यानी 54,000 रुपये टैक्स देना होगा। लेकिन अगर आपने 2014 में 6 लाख रुपये में गाड़ी खरीदी और 2024 में इसे 1 लाख रुपये में बेचा, तो 5 लाख रुपये के घाटे के बावजूद आपको 90,000 रुपये टैक्स देना पड़ेगा।
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किन पर पड़ेगा असर?
यह टैक्स उन लोगों पर लागू होगा जो रजिस्टर्ड विक्रेताओं या प्लेटफॉर्म्स के जरिए गाड़ी बेचते हैं। लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर गाड़ी बेचने वालों पर यह नियम लागू नहीं होगा। सरकार का उद्देश्य है कि इस्तेमाल की गई गाड़ियों के बाजार को नियमित किया जाए और इस बढ़ते क्षेत्र से राजस्व बढ़ाया जाए।
नई गाड़ियों पर पहले ही भारी टैक्स बोझ
नई गाड़ी खरीदने पर कई तरह के टैक्स देने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, 8 लाख रुपये की गाड़ी पर कुल 36.5% टैक्स (GST, सेस, रोड टैक्स और इंश्योरेंस पर GST) लग जाता है, जिससे इसकी कीमत लगभग 11.37 लाख रुपये हो जाती है।
मध्य वर्ग पर क्यों बढ़ रहा है टैक्स का बोझ?
वित्तीय आंकड़े दिखाते हैं कि व्यक्तिगत टैक्स संग्रह कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह से अधिक हो गया है।
- व्यक्तिगत टैक्स संग्रह (2015): 2.65 लाख करोड़
- व्यक्तिगत टैक्स संग्रह (2024): 10.45 लाख करोड़
- वृद्धि: 294.3%
मध्य वर्ग पर यह बढ़ता टैक्स बोझ सोशल मीडिया पर नाराजगी का कारण बन रहा है। लोग मीम्स और जोक्स के जरिए अपनी नाराजगी जता रहे हैं।
सरकार का उद्देश्य और जनता की मांग
2.5 लाख करोड़ रुपये का सेकंड-हैंड गाड़ी बाजार 2028 तक 6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। सरकार इसी से अधिक राजस्व पाना चाहती है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे छोटे विक्रेताओं और आम जनता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
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टैक्स प्रणाली में सुधार की जरूरत
भारत की टैक्स प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। नए टैक्स नियम जनता में भ्रम पैदा कर रहे हैं और इससे करदाताओं की संख्या और सरकार की छवि दोनों पर असर पड़ सकता है।