गर्मी में करें तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती, 45 दिनों में होगी तुड़ाई और होगी बंपर कमाई

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अप्रैल में करें तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती, 45 दिनों में होगी तुड़ाई और होगी बंपर कमाई

तोरई (Ridge Gourd) की खेती किसानों के लिए एक मुनाफे वाला सौदा साबित हो सकती है, खासकर अप्रैल के महीने में। गर्मी के मौसम में तोरई की मांग बाजार में बहुत अधिक होती है क्योंकि यह सेहत के लिए फायदेमंद और पचने में हल्की होती है। इसके साथ ही, इसकी खेती में ज्यादा लागत भी नहीं आती और यह 45 दिनों में तैयार हो जाती है।

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती करने से 130-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की शानदार पैदावार मिल सकती है, जिससे किसान लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं।

Table of Contents

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म

अगर आप भी गर्मी के मौसम में कम समय और कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो अप्रैल के महीने में तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती करना सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। आइए जानते हैं इस किस्म की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी।


तोरई की खेती क्यों करें?

तोरई एक फाइबर और पोषक तत्वों से भरपूर सब्जी है, जिसे लोग गर्मियों में बड़े चाव से खाते हैं। गर्मियों के मौसम में शरीर को ठंडक पहुंचाने और पाचन को दुरुस्त रखने के लिए तोरई का सेवन फायदेमंद होता है।

तोरई की खेती के मुख्य लाभ:

कम लागत, अधिक मुनाफा: इसकी खेती में अधिक खर्च नहीं आता और पैदावार भी अच्छी होती है।
जल्दी तुड़ाई: नामधारी NS 474 किस्म की तोरई 45 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
मार्केट में अच्छी मांग: गर्मी में इसकी मांग स्थानीय और मंडी बाजारों में बहुत अधिक होती है।
लाखों की कमाई: एक हेक्टेयर में 130 से 160 क्विंटल तक की पैदावार मिलती है, जिससे किसानों को लाखों रुपये की आमदनी हो सकती है।


तोरई की नामधारी NS 474 किस्म: एक हाइब्रिड किस्म

नामधारी NS 474 किस्म तोरई की हाइब्रिड किस्म है, जो उच्च पैदावार और बेहतर गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। यह किस्म रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी बेहतर होती है, जिससे फसल खराब होने की संभावना कम रहती है।

नामधारी NS 474 किस्म की विशेषताएं:

  1. तेजी से बढ़ने वाली किस्म: 45 दिनों में फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
  2. बेहतरीन गुणवत्ता: इसका आकार आकर्षक और रंग हरा होता है, जो बाजार में अधिक मांग में रहता है।
  3. ज्यादा पैदावार: एक हेक्टेयर में 130-160 क्विंटल तक पैदावार मिलती है।
  4. रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म कीट और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक होती है।

कैसे करें तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती?

तोरई की खेती के लिए सही मिट्टी, जलवायु और सिंचाई प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं तोरई की खेती का पूरा तरीका।


1. मिट्टी का चयन और तैयारी

तोरई की फसल के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। यह मिट्टी पानी को अच्छी तरह सोखती है और जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखती है।

मिट्टी की विशेषताएं:

  • pH मान: 6.0 से 7.5 के बीच होनी चाहिए।
  • संगठित जल निकासी: खेत में पानी जमा न हो, अन्यथा फसल को नुकसान हो सकता है।

मिट्टी की तैयारी:

  1. खेत की जुताई: खेत को 2-3 बार गहरी जुताई कर भुरभुरा बना लें।
  2. गोबर की खाद: मिट्टी में 10-12 टन गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाएं।
  3. तैयारी के बाद: मिट्टी को 1-2 बार हल्की जुताई कर समतल कर लें।

2. बुवाई का सही समय और तरीका

अप्रैल और मई का महीना तोरई की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय है।

बुवाई का तरीका:

  • बीज की मात्रा: 2-3 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
  • बीज उपचार: बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • बुवाई की गहराई: बीजों को 2-3 सेमी गहराई में बोना चाहिए।
  • बीज की दूरी: पौधों की दूरी 50-60 सेमी और कतारों की दूरी 120-150 सेमी रखनी चाहिए।

3. सिंचाई और जल प्रबंधन

तोरई की फसल को समय-समय पर उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है।

सिंचाई का समय:

  • पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
  • दूसरी सिंचाई: अंकुरण के 6-7 दिन बाद।
  • फूल आने और फल लगने के दौरान: नियमित 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

सिंचाई में ध्यान देने योग्य बातें:

  • अधिक पानी से बचाव करें, ताकि जड़ों का गलना या फसल खराब होने का खतरा न हो।
  • गर्मी के मौसम में ड्रिप सिंचाई सबसे बेहतर विकल्प है।

4. खाद और उर्वरक प्रबंधन

उच्च पैदावार के लिए तोरई की फसल को संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है।

उर्वरक की मात्रा:

  • गोबर खाद: 10-12 टन प्रति हेक्टेयर।
  • नाइट्रोजन (N): 80 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • फॉस्फोरस (P): 40 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • पोटाश (K): 40 किलो प्रति हेक्टेयर।

उर्वरक देने का समय:

  • पहली डोज: बुवाई के समय बेसल डोज में दें।
  • दूसरी डोज: फूल आने के समय 25% नाइट्रोजन दें।
  • तीसरी डोज: फल लगने के समय शेष 25% नाइट्रोजन दें।

5. फसल की देखभाल और रोग नियंत्रण

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म रोग प्रतिरोधक होती है, लेकिन कुछ कीट और रोगों से बचाव के लिए समय पर निगरानी रखना जरूरी है।

सामान्य रोग और उनके नियंत्रण:

  • पाउडरी मिल्ड्यू: सल्फर पाउडर या कैराथेन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • डाउनी मिल्ड्यू: बोर्डो मिश्रण (1%) या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • लाल मक्खी: नीम का तेल या डाइमेथोएट 30% EC 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

तोरई की फसल की तुड़ाई और उत्पादन

तोरई की फसल 45-50 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद हर 3-4 दिन में तुड़ाई करना चाहिए, ताकि तोरई की गुणवत्ता बनी रहे और अधिक पैदावार हो।

तुड़ाई के लिए टिप्स:

  • तोरई को कोमल अवस्था में तोड़ें ताकि बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिले।
  • तुड़ाई सुबह या शाम के समय करें, ताकि फसल की ताजगी बनी रहे।
  • अधिक फल लगने पर तुड़ाई 3-4 दिन के अंतराल पर करते रहें।

तोरई की खेती से कितनी होगी कमाई?

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती से 130-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार मिलती है।

कमाई का अनुमान:

  • एक हेक्टेयर में उत्पादन: 130-160 क्विंटल।
  • बाजार में कीमत: ₹20-25 प्रति किलो।
  • कुल आमदनी: ₹2,60,000 से ₹4,00,000 तक।

लागत और मुनाफा:

  • कुल लागत: ₹50,000 से ₹70,000 प्रति हेक्टेयर।
  • शुद्ध मुनाफा: ₹2,00,000 से ₹3,50,000 तक।

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती से करें बंपर मुनाफा

तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती किसानों के लिए लाभदायक और कम जोखिम वाला विकल्प है। इसकी कम लागत और 45 दिनों में तुड़ाई के कारण यह गर्मी के मौसम में बेहतरीन आय का जरिया बन सकती है।

अगर आप भी लाखों रुपये की कमाई करना चाहते हैं और अप्रैल में सही फसल का चुनाव करना चाहते हैं, तो तोरई की नामधारी NS 474 किस्म की खेती आपके लिए सबसे बेहतरीन विकल्प हो सकती है।

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